"भ्रम"भाग-6
"भ्रम"(भाग-6 अंतिम भाग)
सुजाता को अब अपनी जिंदगी से किसी खुशी की उम्मीद तो नहीं थी। लेकिन जब उसे पता चला कि उसे मां बनने का सौभाग्य प्राप्त होने वाला है। तो इस खुश खबरी ने उसके मुरझाए हुए जीवन में एक आशा की किरण को जगा दिया। लेकिन सुजाता इस बात को लेकर चिंतित भी है कि कहीं उसके पति की बीमारी के लक्षण उसके होने वाले बच्चे में ना आ जाएं। सुजाता का चिंतित होना स्वाभाविक भी है। एक तरफ बच्चे के आने की खुशी तो दूसरी तरफ उसको लेकर अनेक प्रकार की चिंताएं भी। आखिरकार सुजाता ने इस विषय पर उस डॉक्टर से परामर्श लेना उचित समझा जिस डॉक्टर के पास काफी समय से मनीष का इलाज चल रहा है।
सुजाता ने डॉक्टर से अपने आने वाले बच्चे से संबंधित उन सभी प्रश्नों को जानना चाहा जो उसके मन में थे। और साथ में उसने अपने पति मनीष की बीमारी से संबंधित कई बातों को जानना चाहा । क्यों कि सुजाता को ये तो पता था की उसके पति को बचपन से मानसिक बीमारी है। लेकिन उस बीमारी से संबंधित कई बातें और भी उसे जाननी थी।
क्यों कि सुजाता की ननद श्रुति ने उसे बताया था की भाभी आप के आने के बाद मनीष भैया के बर्ताव में कुछ परिवर्तन मुझे दिख रहा है। इसलिए सुजाता का एक बार डॉक्टर से मिलना इसलिए भी उसे जरूरी लग रह था।
सुजाता ने ये भी महसूस किया कि मनीष घर में बाकी लोगों से ज्यादा अपनी छोटी बहन श्रुति और खुद सुजाता के साथ ज्यादा अच्छा महसूस करता है। घर से बाहर भी वो श्रुति के साथ या सुजाता के साथ ही जाता है।
सुजाता ने अपने मन की सारी बातें डॉ.हिमांशु को बताई । डॉ.हिमांशु ने सुजाता को मनीष की बीमारी से संबंधित सारी बातें विस्तार से समझाई और उसके साथ किस प्रकार से रहना है ये भी बताया....
डॉ.हिमांशु--" सुजाता जी आपके पति को एक सिजोफ्रेनिया नामक गंभीर मानसिक बीमारी है। ये बीमारी अधिकतर बचपन में या किशोरावस्था में शुरू होती है।आपके पति इसके साथ बचपन से ही जूझ रहें हैं। माना की इस बीमारी से छुटकारा पाना मुश्किल है लेकिन नामुमकिन नहीं है।"
आपने कई बार ये महसूस किया होगा कि आपके पति कभी बहुत निराश तो कभी आक्रामक व्यवहार करने लगते होंगे इस बीमारी में ऐसा ही होता है। कभी कभी तो इंसान इतना निराश हो जाता है कि आत्महत्या के अलावा उसे कोई रास्ता नजर नहीं आता। और कभी कभी वो बड़ी बड़ी बाते करने लगता है।
इस बीमारी में मरीज को वास्तविक और काल्पनिक वस्तुओं के अंतर को समझने के ज्ञान की अक्सर कमी पाई जाती है। सोचने समझने की क्षमता में कमी के साथ साथ ध्यान केंद्रित करने में भी कमी पाई जाती है।
ऐसे मरीजों में एक भ्रम की स्थिति बनी रहती है। काल्पनिक चीजों से डरना जैसे- उन्हें कोई मारने की कोशिश कर रहा है। कई बार आत्म विश्वास की कमी तो कई बार खुद को ताकतवर समझने लगते है।और भी कई प्रकार के भ्रम उन्हें बने रहते हैं।
इनके अंदर एकरूपता,आत्म विश्वास,भविष्य के लिए योजनाएं बनाने की भी कमी पाई जाती है। ऐसे मरीज अपनी देखभाल करने में भी असमर्थ होते है। अधिकतर बातें उन्हे याद नहीं रहती है।
इस बीमारी के कई कारण हो सकते है । जैसे-आनुवांशिक या दिमाग में कुछ केमिकल्स का असंतुलन और खराब पारिवारिक माहौल भी होता है।
इस प्रकार के कई मरीजों के लक्षण एक दूसरे से भिन्न भी हो सकते हैं। कुछ मरीजों में ये लक्षण साफ दिखाई पड़ते है तो कई मरीजों में इन लक्षणों का पता नहीं चलता है।मनोचिकत्सिक मानते हैं कि अलग अलग मरीजों में अलग अलग लक्षण दिखाई पड़ते हैं। कुछ मरीज तो खुद को बीमार ही नहीं समझते और कोई भी दवाई खाने से इंकार करते हैं। उन्हें लगता है की उन्हें कुछ खिलाकर मारने की कोशिश की जा रही है।
सिजोफ्रेनिया के मरीजों में इसके लक्षणों से छुटकारा एक गंभीर प्रयास के बाद संभव है ।लेकिन लोगों में सिजोफ्रेनिया को लेकर कई प्रकार की भ्रांतियां हैं जिनका वास्तविकता से कोई लेना देना नहीं है। जैसे कि ऐसे मरीजों को स्प्लिट पर्सनैलिटी या मल्टीपल पर्सनैलिटी कहना गलत है। ऐसा कहना मरीज के विषय में सिर्फ एक दुष्प्रचार है।
डॉक्टर इस बीमारी को लाइलाज नहीं मानते है। इसका इलाज काउंसलिंग और साइकोथिरैपी से किया जा सकता है। लेकिन इसकी दवाई अधिकतर मरीज को ताउम्र खानी पड़ती है। प्रत्येक मरीज की स्थिति अलग अलग हो सकती है।
दवाई और साइकोथिरैपी के अलावा घर के माहौल का मरीज के ऊपर बहुत प्रभाव पड़ता है।
सुजाता, डॉ. हिमांशु की बातों को बहुत ही ध्यान से सुन रही थी। डॉ. हिमांशु ने उसके होने वाले बच्चे से संबंधित कुछ बाते बताई ।
डॉ.हिमांशु ने बताया कि प्रत्येक सीजोफ्रेनिया के मरीज के लक्षण उसके बच्चे में आएं ये जरूरी नहीं। बच्चे में इन लक्षणों के आने के चांस तो होते हैं लेकिन कई केस ऐसे भी है जिनमें बच्चों में न के बराबर लक्षण आए है ।तो कुछ केस ऐसे भी हैं जिनमे इस बीमारी का कोई भी लक्षण बच्चों में नहीं था।
सुजाता ने पूछा की उसके पति को घर में अच्छा माहौल मिले तो क्या उसकी स्थिति में कोई सुधार हो सकता है।
डॉ.हिमांशु--जी हां अगर उन्हें घर में अच्छा माहौल मिले तो उनकी स्थिति में सुधार आ सकता है। लेकिन आपको उसके लिए बहुत मेहनत करनी होगी। क्यों मनीष को ये बीमारी बचपन से होने के कारण समय काफी हो चुका है। हालांकि वो कई दिन तक कई बार बिल्कुल ठीक भी लगता होगा।
लेकिन उस समय भी उसके दिमाग में कुछ न कुछ चलता रहता है। क्यों कि उसकी बीमारी के कारण उसे लोगों से दूर रहना पड़ा है। दोस्तों की कमी, लोगों से कम मिलना जुलना, और परिवार में खराब माहौल का होना उसकी स्थिति में सुधार को कम करता है।
सुजाता ने अपने मन में ये निश्चय किया कि वो अपने पति का अच्छे से ध्यान रखेगी। जब घर में ऐसी कोई बात नहीं होती जिससे की मनीष के मन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़े तो उस समय वो काफी ठीक लगता था।
धीरे धीरे वो दिन भी आ गया जब सुजाता ने दो जुड़वां बच्चों को जन्म दिया। जिनमें एक बेटी और एक बेटा है।
बच्चे देखने में काफी स्वस्थ हैं। मनीष भी बच्चों के साथ काफी घुल मिल गया। सुजाता अपनी तरफ से बहुत कोशिश करती कि ऐसी कोई बात ना हो जिससे मनीष की तबियत बिगड़े । लेकिन रमा जी को इसकी कोई परवाह नहीं तो पहले कभी थी और न ही अब। वो अगर अपने स्वभाव में कुछ बदलाव लाती तो शायद मनीष की स्थिति बहुत हद तक सुधर सकती थी। मगर एक मां होते हुए भी उन्होंने कभी कोई कोशिश नहीं की।
रमा जी स्वभाव से थोड़ी जिद्दी हैं और कुछ पैसे का भी उन्हें घमंड बहुत है। उनकी जिद के कारण ही जमुना लाल जी को मनीष की शादी करनी पड़ी। मनीष रमा जी का बस नाम का ही बेटा है। मनीष की दिमागी स्थिति के कारण रमा जी का उससे लगाव कम ही रहा है। और वो उन पर बोझ ना बने इसीलिए उन्होंने मनीष की शादी करवाई।
"विश्वाश नहीं होता कि क्या मां पर कोई बच्चा बोझ भी हो सकता है। लेकिन इस दुनियां में हर प्रकार के उदाहरण देखने को मिल जाते हैं जिनकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता।"
यही कारण था कि मनीष जब अपना होश खो बैठता था तो वह हमेशा अपनी मां के साथ ही आक्रामक व्यवहार करता था। क्यों कि उनकी तरफ से उसे कभी भी उतना प्यार नहीं मिला था जितना एक बच्चे को मिलना चाहिए।
श्रुती अपने भाई का बहुत साथ देती थी। सुजाता की भी श्रुति बहुत मदद करती थी। लेकिन कुछ समय बाद श्रुति की शादी होने के कारण सुजाता को उसकी कमी बहुत खलती।
सुजाता के बच्चे भी बड़े होने लगे। उनके किसी भी खर्च के लिए सुजाता को रमा जी पर ही निर्भर रहना पड़ता। तो जमुना लाल जी ने अपने घर का हिस्सा जो किराए पर दे रखा था उसका किराया सुजाता को हर महीने देने का निश्चय किया। जिससे छोटे छोटे खर्चों के लिए उसे रमा जी पर निर्भर ना रहना पड़े। कुछ समय पश्चात जमुना लाल जी संसार से विदा हो गए। उनका सुजाता को कुछ तो सहारा था । मगर उनके बाद अब कोई भी नहीं था जो सुजाता की कोई बात सुन पाता।
कानून की नजर में तो सुजाता उनकी आधी जयजात की हकदार है। लेकिन अपने जीते जी रमा जी उसे खुद पर ही निर्भर रखना चाहती हैं।
सुजाता को कुछ समय के बाद महसूस होने लगा कि उसे पढ़ाई फिर से शुरू करनी चाहिए। मगर रमा जी नहीं चाहती कि वो आगे की पढ़ाई करे। उन्हें डर है कि कहीं सुजाता पढ़ लिख कर कुछ लायक बन गई तो वो मनीष का साथ ना छोड़ दे।
क्यों कि वो जानती थी कि सुजाता की पढ़ाई में खूब रुचि है। किसी ने ठीक ही कहा है। कि वहम का कोई इलाज नहीं हैं। रमा जी मनीष की सगी मां होते हुए भी उसका खयाल नहीं रख सकी। लेकिन सुजाता की धोखे से मनीष के साथ शादी होने के बावजूद भी उसने अपने पति का साथ नहीं छोड़ा। वो अगर चाहती तो एक पल में रिश्ता तोड़ सकती थी। लेकिन ये उसके संस्कार ही थे जो उसने रिश्ता नहीं तोड़ा । जबकि उसके पास अपने ससुराल वालों के खिलाफ सबूत भी था। वो चाहती तो उनसे अच्छी रकम हासिल कर सकती थी, मगर उसने ऐसा कुछ नहीं किया।
फिर भी रमा जी को अपनी बहु पर विश्वास नहीं था।
आखिर उसे अपनी इच्छा को दबाना ही पड़ा। ये ही तो करती आई थी वो अब तक। लेकिन अब उसे अपने बच्चों की खातिर कुछ तो कदम उठाना ही पड़ेगा। एक औरत फिर भी हार मान जाए । मगर एक मां कभी हार नहीं मान सकती । जब बात उसके बच्चो के भविष्य की हो,तब तो बिल्कुल भी नहीं । सुजाता ने प्रत्येक परिस्थिति को झेला था इसलिए वो नहीं चाहती थी कि उसके बच्चे भी ये सब झेले। उसे पता था कि वो आधी जायदाद की हकदार है।
मगर वो जानती थी कि बूंद बूंद से ही घड़ा भरता है । और घड़े में बिना कोई बूंद डाले सिर्फ उसे खाली करते रहो तो आखिर वो कब तक भरा रहेगा। सुजाता ने मन हीं मन सोचा कि उसको हिस्सा मिलेगा जब मिलेगा अभी तो वो एक एक रुपए के लिए अपनी सास पर आश्रित है।
ये भी सत्य है कि जिन लोगों को कुछ करने की चाह होती है वो प्रत्येक परस्थिति में रास्ता खोज ही लेते हैं।
जब सुजाता को सारे रास्ते बंद दिखाई दिए तो उसने कपड़े सिलने का काम शुरू किया। रमा जी पहले तो राजी नहीं हुई लेकिन जब श्रुति ने उन्हें समझाया तो मान गई। लोगों को उसके सिले हुए कपड़े पसंद आने लगे। तो कुछ समय बाद उसने एक बुटीक पर काम करना शुरू कर दिया। वहां उसे कुछ नई चीजे भी सीखने को मिली। उसकी बनाई हुई ड्रेसेज को खूब पसंद किया जाने लगा।
अब उसकी सैलरी भी बढ़ गई थी। आत्मनिर्भर होने के कारण उसका आत्मविश्वास भी बढ़ने लगा। सुजाता ने कभी नहीं सोचा था की जिंदगी के किसी मोड़ पर उसका हुनर इस तरह उसके काम आएगा।
समय अपनी गति से बहता गया। सुजाता को सबसे ज्यादा खुशी इस बात की थी कि उसके बच्चे दिमाग से बिल्कुल स्वस्थ हैं। बच्चे भी स्कूल जाने लगे। सुजाता जो कमाती थी उसमें से बचत करते हुए उसने कुछ पैसा भी इकट्ठा कर लिया। उसका सपना था कि वो अपना एक बुटीक खोले। मगर अभी इतना पैसा उसके पास नहीं था। सुजाता की ननद श्रुति उसके मन की बात को भांप गई। और उसने अपनी मां को समझाया कि वो बुटीक खोलने में अपनी बहु की मदद करें।
रमा जी की बड़ी बहू कभी उनको इतना मान सम्मान नहीं देती थी जितना की सुजाता उनको देती थी। इस कारण रमा जी का मन सुजाता की तरफ खिंचने लगा । और कुछ उनकी ढलती उम्र का भी असर था। सुजाता को मेहनत से आगे बढ़ते देख भी वो मन हीं मन खुश थीं। और उनके व्यवहार में भी बहुत परिवर्तन आ चुका था। उन्होंने खुशी खुशी सुजाता को बुटीक खोलने के लिए एक बड़ी रकम दे दी।
अपनी सास के इस परिवर्तन को देख वो बहुत खुश थी। सुजाता के माता पिता भी अपनी बेटी की खुशियों को देख कर बहुत खुश थे। आखिर वो दिन आ ही गया जब सुजाता की मेहनत और विपरीत परिस्थितियों में भी उसका अच्छा व्यवहार रंग लाया।
रमा जी भी अब बच्चों के साथ साथ मनीष के साथ भी समय बिताने लगीं। मनीष की तबियत पूरी तरह तो नहीं लेकिन उसमें काफी सुधार आ चला था। और ये सुजाता के प्यार और विश्वाश का ही नतीजा था। सुजाता के व्यवहार और तरक्की से रमा जी का बड़ा बेटा और बहू भी खुश हो गए।
सुजाता की सूझ बूझ ने पूरे परिवार को एक कर दिया। सुजाता ने एक बहु का ही नहीं बल्कि बेटे का भी फर्ज निभाया।
और एक सुखी परिवार का निर्माण किया।
अब सुजाता सिर्फ एक बेटी, बहू, पत्नी, और मां ही नहीं एक बड़े से बुटीक की मालकिन भी थी । जिसे उसने अपनी मेहनत से खड़ा किया ।
सुजाता ने अपने बुटीक का उद्घाटन अपनी सास के हाथों फीता काटकर करवाया। रमा जी आज सुजाता को अपने गले से लगाये बिना रह ना सकी । ये देखकर सुजाता की आंखों से खुशी के आंसू बहने लगे।
आखिरकार नफरत को प्रेम और विश्वास के आगे झुकना ही पड़ा। वास्तव में प्रेम में वो ताकत है जो नफरत को अपने आगे झुका पाए। भले ही देर क्यूं ना लगे लेकिन जीत हमेशा सच्चाई और विश्वास की ही होती है। और सुजाता के अपने काम के प्रति विश्वास और परिवार के प्रति प्रेम ने असंभव को भी संभव कर दिखाया।
बारिष की बूंदो के साथ शुरू होने वाली एक सुनहरे सपने की कहानी खुशी के आंसुओं की बरसात के साथ पूरी हुई।
(यह वास्तविक घटनाओं से प्रेरित होकर लिखी गई एक काल्पनिक कहानी है। )
समाप्त
कविता गौतम...✍️
©®
Khushi jha
26-Oct-2021 12:15 AM
बेहतरीन
Reply
Swati chourasia
25-Oct-2021 02:42 PM
Very beautiful 👌
Reply
Ankit Raj
25-Oct-2021 02:31 PM
Good👍
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